भारत में बन रहा दुनिया का पहला डुअल स्टेल्थ ड्रोन:दुश्मन के रडार और इंफ्रारेड सिग्नल दोनों पकड़ नहीं पाएंगे, सेकेंड्स में अटैक भी कर सकेगा
भारत दुनिया का पहला ऐसा डुअल स्टेल्थ ड्रोन बना रहा है, जो दुश्मन के हाईरेज रडार और इंफ्रारेड सिग्नल्स से बचने के साथ ही सेकेंड्स में अटैक भी कर सकेगा। इस ड्रोन की सबसे बड़ी खासियत 'रडार एब्जॉर्बशन एंड मल्टीस्पेक्ट्रल एडैप्टिव' टेक्नोलॉजी (RAMA) है। यह खास स्वदेशी कोटिंग मटेरियल है, जो रडार और इंफ्रारेड की पहचान को 97% तक कम कर देता है। इससे इससे ड्रोन दुश्मन के रडार और इंफ्रारेड सिग्नल से पूरी तरह छुप सकता है। अभी अमेरिका, चीन और रूस के पास सिर्फ रडार से छुपने वाले स्टेल्थ ड्रोन हैं। इस साल के आखिर तक नौसेना को सौंपे जा सकते हैं ड्रोन इस टेक्नोलॉजी पर बेस्ड ड्रोन का नाम भी RAMA नाम रखा गया है। ड्रोन का वजन 100 किलो है और ये 50kg तक वजन ले जा सकता है। 2025 के आखिर तक रामा के साथ ड्रोन को नौसेना को सौंपा जा सकता है। ड्रोन को हैदराबाद की स्टार्टअप कंपनी वीरा डायनामिक्स और बिनफोर्ड रिसर्च लैब रक्षा मंत्रालय की मदद से बना रही है। ड्रोन को बनाने के लिए वीरा डायनामिक्स ने अपनी RAMA का इस्तेमाल किया है और बिनफोर्ड लैब्स ने इसमें अपनी ऑटोनॉमस ड्रोन टेक्नोलॉजी डाली है। सवाल- कहां से आया ये आइडिया? जवाब- वीरा डायनामिक्स के सीईओ साई तेजा पेद्दिनेनी ने बताया कि इस प्रोजेक्ट की शुरुआत 2022 में नौसेना के एक प्रॉब्लम स्टेटमेंट से हुई थी। नौसेना को एक ऐसी टेक्नोलॉजी चाहिए थी जो इंफ्रारेड स्टील्थ दे सके, यानी ड्रोन को थर्मल सेंसर से बचाए। यहीं से RAMA का जन्म हुआ। वीरा ने बिनफोर्ड लैब्स के साथ हाथ मिलाया, जो पहले से ही भारतीय सेना के लिए ऑटोनॉमस ड्रोन्स बनाती है। बिनफोर्ड के ड्रोन्स GPS और रेडियो फ्रिक्वेंसी (RF) से मुक्त माहौल में भी काम कर सकते हैं। सवाल- इस ड्रोन में क्या खास है? रडार और इंफ्रारेड से बच सकता है: रडार एब्जॉर्बशन एंड मल्टीस्पेक्ट्रल एडैप्टिव (RAMA) कोटिंग की वजह से ये ड्रोन दुश्मन के रडार और थर्मल सेंसर को चकमा दे सकता है। हाई-रिस्क मिशन्स के लिए तैयार: इस को ड्रोन हाई रिस्क इलाकों में गुप्त ऑपरेशन्स के लिए डिजाइन किया गया है, जैसे जासूसी, टारगेट स्ट्राइक या सर्विलांस। ऑटोनॉमस सिस्टम: बिनफोर्ड का ऑटोनॉमी स्टैक इसे बिना किसी पायलट के खुद-ब-खुद उड़ने और मिशन पूरा करने की ताकत देता है, वो भी GPS और रेडियो फ्रिक्वेंसी के बिना। मल्टी-प्लैटफॉर्म यूज़: RAMA कोटिंग को ड्रोन्स के अलावा जहाजों, फाइटर जेट्स और नेवल वेसल्स पर भी इस्तेमाल किया जा सकता है। ड्रोन कैसे काम करता है? जवाब- इस ड्रोन का सबसे बड़ा हथियार 'अदृश्य' होने का गुण है। RAMA मटेरियल दो तरह के कार्बन मटेरियल्स से बना है। यह एक खास नैनोटेक बेस्ड स्टेल्थ कोटिंग हैं, जो रडार और इंफ्रारेड स्पेक्ट्रम में विजिबिलिटी को कम करती है। इसे पेंट या रैप के रूप में ड्रोन पर लगाते हैं। यह कोटिंग रडार तरंगों को सोख लेता है और गर्मी में बदल देता है। ये गर्मी इतनी तेजी से हवा में घुल जाती है कि ड्रोन का थर्मल सिग्नेचर लगभग गायब हो जाता है। साथ ही, बिनफोर्ड का ऑटोनॉमस सिस्टम इसे स्मार्ट बनाता है। ये ड्रोन बिना किसी सिग्नल के भी अपने टारगेट को ढूंढ सकता है और मिशन को अंजाम दे सकता है। यानी, ये दुश्मन के इलाके में चुपके से घुसकर काम कर सकता है, बिना पकड़े गए। सेना को क्या फायदा? जवाब- जंग में दुश्मन सबसे पहले रडार से ड्रोन पकड़ते हैं, फिर इंफ्रारेड से निशाना लगाकर उसे गिराते हैं। ड्रोन रामा की बदौलत इन दोनों से बच सकता है। जब 100 हमलावर ड्रोन भेजे जाते हैं, तो 25–30 ही टारगेट तक पहुंच पाते हैं। ये नए ड्रोन 80-85 टारगेट हिट कर सकेंगे। भारत की सेना, खासकर नौसेना, के लिए ये ड्रोन एक बड़ा हथियार है। हाल ही में हुए 'ऑपरेशन सिंदूर' (मई 2025) में भारतीय सेना ने 600 से ज्यादा पाकिस्तानी ड्रोन्स को मार गिराया था, जिसने ये साबित कर दिया कि ड्रोन वॉरफेयर अब कितना अहम है। कौन हैं ये स्टार्टअप्स? वीरा डायनामिक्स: हैदराबाद की ये डिफेंस टेक स्टार्टअप भारतीय नौसेना के साथ मिलकर काम करती है। इनका फोकस हाई-टेक स्टील्थ टेक्नोलॉजी पर है, और RAMA इनकी सबसे बड़ी खोज है। बिनफोर्ड रिसर्च लैब्स: ये भी हैदराबाद की कंपनी है, जिसने मिनिस्ट्री ऑफ डिफेंस के IDEX अवॉर्ड्स जीते हैं। ये ऑटोनॉमस ड्रोन्स बनाती है, जो पहले से ही सेना के ऑपरेशन्स में शामिल हैं।
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